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A Photo essay on Savita Singh's poem
रूथ का सपना / Ruth’s Dream


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रूथ ने देखा एक सपना
उसने देखे ऐसे कई सपने
तब उसके साथ थे उसके दुसरे प्रेमी
इस बार वह बिस्तर में अकेली थी
और शहर भी दूसरा था
इस बार आधी रात से ही बर्फ़ गिरने लगी थी
और उसके घर के बाहर
सुबह-सुबह प्रेमियोंका एक जोड़ा झगड़कर अलग हुआ था

रूथ का सपना मामुली सपना नहीं था
उसने देखा था एक घने पेड़ के नीचे
बैठे एक दार्शनिक संत को
जो उसे समझ रहा था अस्तित्व के मानी
उसने उसे बताया भाषा ही समस्त संसार है
और उसमें ही एकांत और प्रेम दोनों संभव हैं

रूथ भ्रमित थी
क्योंकि वह तो भाषा में ही थी सदा से
लेकिन उसे प्रेम के बदले प्रेम कभी नहीं मिला
और उसका एकांत भरा पड़ा था
पिता की यातना और माँ की भीरुता से
यदा-कदा उसमें टहलते हुए आये थे कुछ प्रेमी
जो छोड गये थे पीछे सिर्फ अपने बिस्तर

रूथ देखना चाहती है कई बार

Savita Singh

Ruth’s Dream: These were not the images I had initially made for Singh’s poem but one day as I looked outside my airplane window after an introspective trip I heard Singh’s voice reciting the poem. And as I reached the last verse and saw that solitary snowflake of a cloud, I knew I had come closer to finding out how to survive in a city of snow.

Andrea Fernandes